ऑटिज्म का लक्षण है, बच्चे का अकेलापन, पेरेंट्स रहे सावधान

 ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। इसमें बच्चा आमतौर पर किसी चीज में दिलचस्पी नहीं दिखाता है। लड़कियों के मुकाबले लड़कों में इस डिसऑर्डर के मामले अधिक देखे गए हैं। जागरूकता और जानकारी के अभाव में कई बार बच्चे के इस डिसऑर्डर के बारे में समय पर पता नहीं चल पाता है। कुछ ऐसे लक्षण है ,जिससे आसानी से यह समझा जा सकता है कि बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है या नहीं।

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ऑटिज्म के लक्षण 

ऑटिज्म के लक्षण

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में सामान्यतया कुछ इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। किसी चीज में रुचि ना दिखाना, जीवंत वस्तुओं के बजाय  निर्जीव वस्तुओं जैसे खिलौने किताब इत्यादि से ज्यादा जुड़ाव रखना, खुद को एक्सप्रेस करने में असहज होना, किसी भी चीज को बार-बार दोहराना, आई कांटेक्ट ना करना, भावनाएं ना समझ पाना, खुशी परेशानी ना बताना, बच्चे को अकेलापन अधिक पसंद होना आदि।

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पेरेंट्स को ध्यान देने योग्य बातें

इस उम्र से ही रखे बच्चे पर नजर

2 वर्ष की उम्र से ही बच्चे के इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं, लेकिन कई बार पेरेंट्स ऐसे लक्षणों पर ध्यान नहीं देते। इसलिए जब भी आपको लगता है कि बच्चे का व्यवहार अलग है तो उस पर ध्यान देना शुरू कर दें।

बच्चे से उग्र व्यवहार न करें

कई बार पेरेंट्स बच्चे को कुछ सिखाते हैं, लेकिन वह सीख नहीं पाता तो वह बिना उसकी स्थिति को समझे दूसरे बच्चों से उसकी तुलना करते हुए उसके साथ उग्र हो जाते हैं। ऐसा ना करें। बच्चे के मन पर असर पड़ता है।

बिहेवियरल थेरेपी कराएं

ऐसे बच्चों को अपने देखभाल खुद करने और सोशल स्पीच,और लैंग्वेज स्किल आदि सिखाने के लिए बिहेवियरल थेरेपी दी जाती है। अतः अपने डॉक्टर से संपर्क कर बिहेवियरल थेरेपी का इंतजाम करें।

पेट थेरेपी दें

कुछ रिसर्च में सामने आया है कि जिन परिवारों में पालतू पशु या जानवर रखे जाते हैं, वहां ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में सुधार अधिक देखा गया है। ऐसा इसलिए होता है कि कम उम्र के बच्चे पालतू पशुओं से आसानी से घुलमिल जाते हैं और उनमें अकेलेपन से दूरी का भाव उत्पन्न हो जाता है। धीरे धीरे पालतू पशुओं के अतिरिक्त अन्य बच्चों और माता-पिता से भी नज़दीकियां बढ़ाना शुरू कर देते हैं।

स्पेशल लर्निंग

ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे सामान्यतया इंटरएक्टिव नहीं हो पाते हैं। ऐसे में उन्हें स्पेशल टीचर से ही पढ़ा सकते हैं। इंटरेक्शन के अभाव के कारण बच्चों के सीखने का विकास नहीं हो पाता है और वह छोटी-छोटी बातों को भी सीखने में या तो काफी वक्त लगा देते हैं अथवा सीख ही नहीं पाते हैं। किंतु स्पेशल लर्निंग के द्वारा बच्चों के बिहेवियर को समझकर टीचर्स उसी हिसाब से बच्चे की लर्निंग को आगे बढ़ाते हैं।

स्ट्रैंथ का प्रभावी इस्तेमाल

ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की सबसे बड़ी खासियत होती है इनकी स्ट्रैंथ, किसी भी कार्य में बोरियत महसूस नहीं करते हैं। एक ही कार्य को 50 बार भी दोहरा सकते हैं। इनके इसी खूबी का फायदा उठाकर इनके लिए इस प्रकार का टीचिंग प्रोग्राम विकसित किया जाता है जिससे यह बच्चे सीख कर के बेहतर जीवन जी सकें।

क्योंकि ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। अर्थात बच्चे को इस मेडिकल कंडीशन से बाहर निकाला जा सकता है यदि प्रारंभ से ही बच्चे पर ध्यान दिया जाए और ऊपर बताई गई सभी प्रकार की थेरेपी और लर्निंग प्रोग्राम के द्वारा बच्चे के सीखने की क्षमता को विकसित किया जाए।


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