अश्वगंधा एक वरदान,अनेक है इसके फायदे
अश्वगंधा की पहचान
अश्वगंधा या असगंध जिसका वैज्ञानिक नाम विथेनिया सोमनीफेरा है।यह एक झाड़ीदार पौधा है। यह सोलेनेसी कुल का पौधा है। भारत में इसकी 2 प्रजातियां पाई जाती हैं।भारत में पारंपरिक रूप से अश्वगंधा का उपयोग आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है। अश्वगंधा की पहचान इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोड़े के मूत्र जैसी गंध से की जा सकती है,इसी कारण से इसका नाम अश्वगंधा पड़ा।
भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊंचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान , महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवम् हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है।
अश्वगंधा एक वरदान,अनेक है इसके फायदे |
अश्वगंधा का पौधा सीधा अत्यन्त शाखित, सदाबहार तथा झाड़ीनुमा 1.25 मीटर लम्बे होता हैं। पत्तियां रोम युक्त , अंडाकार होती हैं। फूल हरे , पीले तथा छोटे एवम् पांच के समूह में लगे हुए होते हैं। इसका फल बेरी है जो कि मटर के समान तथा दूध युक्त होता है। जो कि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी लम्बी 2.5-3.5 सेमी मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अन्दर से सफेद होती हैं।
अश्वगंधा की जड़ों में 0.13%से 0.31% तक एल्केलाइड की संद्रता पाई जाती है। इसमें महत्वपूर्ण विथेनिन एल्केलाइड होता है, जो कि कुल एल्केलाइड का 35 से 40%होता है।
अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग की जाने वाली एक महत्वपूर्ण ओषधि है। आयुर्वेद मे अशवगंधा को मेध्य रसायन भी कहते है जिसे दिमाग की याद्दाश्त तथा एकाग्रता बढाने के लिए उपयोग किया जाता है
अश्वगंधा को जीर्णोद्धारक औषधि के रूप में जाना जाता है।यह एंटीइंफ्लेमेटरी,एंटीबायोटिक गुणों से युक्त होती है। अनेक रोगों के उपचार हेतु अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है।
अश्वगंधा का प्रयोग विभिन्न औषधीय योगों के रूप में विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है जैसे अश्वगंधारिष्ट,अश्वगंधा घृत,अश्वगंधा चूर्ण,अश्वगंधा अवलेह , सौभाग्य शुंठी पाकसुकुमारघृत ।
अश्वगंधा पाउडर के उपयोग का तरीका व फायदे
इस प्रकार से अश्वगंधा पाउडर लेने के अनेक फायदे है जो इस प्रकार से है:
पुरुषत्व बढ़ाता है:
अश्वगंधा पुरुषों में नपुंसकता को दूर करने में बहुत फायदेमंद है। यह पुरुषत्व को बढ़ाने में रामबाण की तरह काम करता है। इस चूर्ण के सेवन से पुरुषों की यौन क्षमता बढ़ती है। साथ ही शरीर को एक अलग एनर्जी भी देता है।तनाव दूर करता है:
आजकल ज्यादातर लोग डिप्रेशन और तनाव के शिकार होते हैं। अश्वगंधा शारीरिक और मानसिक दोनों तनावों को दूर करता हैे और मन शांत होता है ।शुगर को कम करता है
अश्वगंधा का सेवन शरीर में ब्लड शुगर का स्तर कम कर डायबिटीज को नियंत्रण में रखता है। ये कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी कम करता है।हाई ब्लड प्रेशर में राहत:
अश्वगंधा का नियमित सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर में कमी होती है। रक्तचाप नॉर्मल रहता है।निम्न रक्त चाप के रोगियों को इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए।
अश्वगंधारिष्ट औषधीय योग
अश्वगंधारिष्ट के घटक :
अश्वगंधा,श्वेता, मूसली, मंजिष्ठा, हरीतकी, हरिद्रा,यष्टि मधु, विदारी कंद,दारू हरिद्रा,अर्जुन त्वक,अनंत मूल,रक्त चंदन,कृष्ण सरिवा ,चंदन,धताकि पुष्प, शुंठी, वासा,मधु,मारीच,तवाक,इला,तेजपत्र, प्रियांगु, नागकेसर, पिपली ।
अश्वगंधारिष्ट के फायदे :
मानसिक विकार दूर करता है :
अश्वगंधारिष्ट दिमाग की नसों को शांत रखता है। मानसिक विकार जैसे तनाव,चिंता ,अनिद्रा और चिडचिडापन में यह औषधि चमत्कारिक रूप से प्रभाव दिखाती है । अश्वगंधारिष्ट के कुछ दिन प्रयोग से मन शांत रहता है । सभी मानसिक विकार दूर होते है ।शारीरिक कमजोरी दूर करता है :
अश्वगंधारिष्ट का सेवन आपके लिए बहुत गुणकारी है ।जो शरीर से दुर्बल है खुद को कमजोर महसूस करते है वे इसका नियमित सेवन करें । अश्वगंधारिष्ट के नियमित सेवन से शरीर को बल मिलता है ।हमारा इम्युन सिस्टम भी मजबूत बनाता है । जो लोग जल्दी थक जाते है खुद को कमजोर महसूस करते है वे इसका सेवन कर सकते है ।यौन क्षमता बड़ाने में उपयोगी :
जो व्यक्ति यौन व्याधियों से पीड़ित है । वे अश्वगंधारिष्ट के नियमित प्रयोग से नया जीवन प्राप्त करते है ।कुछ दिन प्रयोग मात्र से उन्हें वैवाहिक जीवन में आनंद आने लगता है । अश्वगंधारिष्ट आपकी सेक्स पॉवर को बढ़ाता है। इसके सेवन से प्रजनन क्षमता में सुधार होता है। नपुंसकता व शीघ्रपतन दूर करने की यह एक प्रभावी औषधि है |हड्डियों व जोड़ों के दर्द में प्रभावी औषधि :
अश्वगंधारिष्ट का प्रयोग न केवल शारीरिक व मानसिक दुर्बलता दूर करने में किया जाता है। बल्कि यह जोड़ों के दर्द, गठिया रोग व हड्डियों के रोगों मे बहुत प्रभावी है।बहुत से चिकित्सक गठिया व जोड़ों के रोग में अश्वगंधारिष्ट का प्रयोग करने की सलाह देते है।अनिद्रा दूर करने में उपयोगी ओषधि :
जो लोग रात्रि में ठीक से सो नही पाते वे अश्वगंधारिष्ट का सेवन रात्रि में सोते समय करें।अश्वगंधारिष्ट के सेवन से कुछ ही दिनों आपकी अनिद्रा की शिकायत दूर होने लगती है । इसके उपयोग से आप गहरी व पूरी नींद लेने में सक्षम होते है ।ध्यान रखने योग्य बातें: जिन लोगों को पेट की समस्या रहती है, एसिडिटी व गैस की समस्या है या फिर जिन्हें पेट में अल्सर आदि है, उन्हें अश्वगंधारिष्ट का सेवन नहीं करना चाहिए । गर्भवती महिलाएं भी अश्वगंधारिष्ट का सेवन न करें ।थायराइड के रोगी को भी अश्वगंधारिष्ट के उपयोग से बचना चाहिए ।
अश्वगंधा घृत के फायदे:
अश्वगंधा घृत, असगंध और गाय के घी से निर्मित एक आयुर्वेदिक दवा है। आयुर्वेद में, असगंध को इसमें पाए जाने वाले गुणों के कारण रसायन माना गया है। यह शरीर में ओज, तेज, बल की वृद्धि करता है। इसके सेवन से नसों की कमजोरी दूर होती है। पुरुषों के लिए यह अत्यंत उपयोगी है। यह एक उत्तम वाजीकारक है और पौरुष शक्ति में वृद्धि करता है।अश्वगंधा घृत, का सेवन सभी प्रकार के वात रोगों में, जोड़ों के दर्द में, कमर के दर्द आदि में राहत देता है। यह नींद न आने की समस्या को भी दूर करता है। यह दिमाग को ताकत देता है। इसके सेवन से धातुएं पुष्ट होती हैं।
अश्वगंधा चूर्ण के साथ अन्य योग और उनके फायदे:
इंद्रिय दुर्बलता (लिंग की कमजोरी) दूर करने के लिए अश्वगंधा के प्रयोग
1.अश्वगंधा पाउडर को कपड़े से छान कर उसमें उतनी ही मात्रा में खांड मिलाकर रख लें। एक चम्मच की मात्रा में लेकर गाय के ताजे दूध के साथ सुबह में भोजन से तीन घंटे पहले सेवन करें।
2.रात के समय अश्वगंधा की जड़े के बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह से घोंटकर लिंग में लगाने से लिंग की कमजोरी या शिथिलता दूर होती है।
3.असगंधा, दालचीनी और कूठ को बराबर मात्रा में मिलाकर कूटकर छान लें। इसे गाय के मक्खन में मिलाकर सुबह और शाम शिश्न (लिंग) के आगे का भाग छोड़कर शेष लिंग पर लगाएं। थोड़ी देर बाद लिंग को गुनगुने पानी से धो लें। इससे लिंग की कमजोरी या शिथिलता दूर होती है।
अश्वगंधा योग शारीरिक दुर्बलता के लिए
1.2-4 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को एक वर्ष तक बताई गई विधि से सेवन करने से शरीर रोग मुक्त तथा बलवान हो जाता है।10-10 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, तिल व घी लें। इसमें तीन ग्राम शहर मिलाकर जाड़े के दिनों में रोजाना 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से शरीर मजबूत बनता है।6 ग्राम असगंधा चूर्ण में उतने ही भाग मिश्री और शहद मिला लें। इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलाएं। इस मिश्रण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शीतकाल में 4 महीने तक सेवन करने से शरीर का पोषण होता है।3 ग्राम असगंधा मूल चूर्ण को पित्त प्रकृति वाला व्यक्ति ताजे कच्चे दूधके साथ सेवन करें। वात प्रकृति वाला शुद्ध तिल के साथ सेवन करें और कफ प्रकृति का व्यक्ति गुनगुने जल के साथ एक साल तक सेवन करें। इससे शारीरिक कमोजरी दूर होती है और सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।
2. 20 ग्राम असगंधा चूर्ण, तिल 40 ग्राम और उड़द 160 ग्राम लें। इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक महीने तक सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्म हो जाती है।असगंधा की जड़ और चिरायता को बराबर भाग में लेकर अच्छी तरह से कूट कर मिला लें। इस चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से शरीर की दुर्बलता खत्म हो जाती है।एक ग्राम असगंधा चूर्ण में 125 मिग्रा मिश्री डालकर, गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से वीर्य विकार दूर होकर वीर्य मजबूत होता है तथा बल बढ़ता है।
गर्भधारण करने में अश्वगंधा के प्रयोग से लाभ
20 ग्राम असगंधा चूर्ण को एक लीटर पानी तथा 250 मिलीग्राम गाय के दूध में मिला लें। इसे कम आंच पर पकाएं। जब इसमें केवल दूध बचा रह जाय तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिला लें। इस व्यंजन का मासिक धर्म के शुद्धिस्नान के तीन दिन बाद, तीन दिन तक सेवन करने से यह गर्भधारण में सहायक होता है।अश्वगंधा चूर्ण के फायदे गर्भधारण की समस्या में भी मिलते हैं। असगंधा चूर्ण को गाय के घी में मिला लें। मासिक-धर्म स्नान के बाद हर दिन गाय के दूध के साथ या ताजे पानी से 4-6 ग्राम की मागर्भधारण करने में अश्वगंधा के प्रयोग से लाभ
20 ग्राम असगंधा चूर्ण को एक लीटर पानी तथा 250 मिलीग्राम गाय के दूध में मिला लें। इसे कम आंच पर पकाएं। जब इसमें केवल दूध बचा रह जाय तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिला लें। इस व्यंजन का मासिक धर्म के शुद्धिस्नान के तीन दिन बाद, तीन दिन तक सेवन करने से यह गर्भधारण में सहायक होता है।अश्वगंधा चूर्ण के फायदे गर्भधारण की समस्या में भी मिलते हैं। असगंधा चूर्ण को गाय के घी में मिला लें। मासिक-धर्म स्नान के बाद हर दिन गाय के दूध के साथ या ताजे पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में इसका सेवन लगातार एक माह तक करें। यह गर्भधारण में सहायक होता है।
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