स्वस्थ नींद स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक

 

स्वस्थ नींद मतलब स्वस्थ जीवन (healthy sleeping means healthy life)

प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में नींद व जागृत अवस्था के लिए एक निश्चित कार्यक्रम होता है, और हमारे में इसी कार्यक्रम के तहत दिन के कुछ समय के लिए ज्यादा जागृत अवस्था व सतर्कता बढ़ जाती है, और कुछ समय के लिए  आलसीपन।
प्रायः यह कार्यक्रम 25 घंटे का होता है। इसी क्रम के तहत 13 से 19 साल की उम्र के लोग देर रात तक जागते हैं और तीसरे पहर में सोते हैं ।जोकि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
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स्वस्थ नींद स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक

अगर हम संपूर्ण नींद नहीं लें तो हमारे स्वास्थ्य और दैनिक क्रियाकलापों पर व्यापक असर पड़ता है। कई चिकित्सकीय अध्ययनों से पता चलता है कि अगर हम रोजाना 7 घंटे से कम सोए तो हमारे कार्य करने की क्षमता धीमी हो जाती है। कई गणनाएं जैसे गणित के हर सवाल हल करने की क्षमता में कमी आती है। अगर हम 5 घंटे रोजाना सोए तो हमारी कार्य क्षमता धीमी होती है और असफलता बढ़ जाती है। और अगर हम दिन में सिर्फ 3 घंटे हो जाना सोए तो हम रोशनी के आधार पर वस्तु भेद नहीं कर पाते है।
अतः यह आवश्यक है कि हम प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में नींद ले और स्वस्थ नींद ले। स्वस्थ नींद से तात्पर्य यहां गहरी नींद से है। अगर व्यक्ति प्रतिदिन उम्र के हिसाब से निर्धारित समय तक गहरी नींद लेता है तो व स्वस्थ जीवन जीता है और उसकी कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है।

स्वस्थ नींद का अर्थ (helthy sleeping meaning)

वैज्ञानिकों के लिए नींद एक जिज्ञासा का विषय रहा है। अभी तक के अध्ययनों से पता चलता है कि नींद एक जटिल प्रक्रिया है इस दौरान हमारी शारीरिक वृद्धि व स्वस्थ जीवन के लिए कई महत्वपूर्ण क्रिया संपन्न होती है।
अच्छी नींद को हम इस तरह माप सकते हैं कि जागने के बाद व्यक्ति को किसी तरह का तनाव हो ना हो। साथ ही नींद के दौरान रिलैक्स महसूस करें। शरीर में सुस्ती न रहे और दिल दिमाग चुस्त रहे। अच्छी नींद लेने के लिए तनाव मुक्त रहें। योग मेडिटेशन सहित शारीरिक व्यायाम तथा अच्छा खानपान रखें।
चिकित्सा वैज्ञानिकों ने नींद को मस्तिष्क की विद्युत तरंगों के आधार पर 2 चक्रों में बांटा है।

1. प्रथम चक्र -बिना सपनों की नींद

चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार प्रथम 90 मिनट में हम नींद की ओर अग्रसर होते हैं और बिना सपनों की नींद का चक्र शुरू होता है। इस दौरान हमारी सांस व हृदय की गति धीमी होती है। साथ-साथ आंखों की गति कम किया बिल्कुल नहीं होती। इसी चक्र में हम गहरी नींद की ओर अग्रसर होते हैं। इस चक्र के दौरान नींद से जागना बहुत कठिन होता है। इस चक्र से शारीरिक थकान दूर होती है।

2. द्वितीय चक्र- सपनों की नींद

यह चक्र नींद के आखिरी 90 मिनट में ज्यादा चलता है। इसी दौरान हम बिल्कुल निष्क्रिय हो जाते हैं,और हमारी श्वास की गति अनियमित हो जाती है। हृदय व आंखों की गति बढ़ जाती है। मस्तिष्क की ऑक्सीजन खपत बढ़ जाती है। इस चक्र के दौरान हम विविध सपनों को देखते हैं। यह चक्र हमारी स्वस्थ मानसिकता व याददाश्त के लिए भी जिम्मेदार होता है।  इस चक्र से ही हम निद्रा से जागते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए नींद अति आवश्यक है। और पूरी नींद के लिए इन दोनों चक्रों का होना अति आवश्यक है।

स्वस्थ नींद में बाधक होते हैं खर्राटे

हमारे मुंह और गले में कई संरचनाएं होती है। जैसे जुबान,टॉन्सिल्स , एडीनाईडस ,तालु आदि।
इन सभी संरचनाओं की अनियमितता से रात को श्वास नली में रुकावट आती है और खर्राटे आने लगते हैं। मोटे लोगों में इन संरचनाओं का आकार वसा जमने से बढ़ जाता है। जब इस तरह के व्यक्ति रात को सोते हैं तो मुंह के चारों ओर की मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती है। और यह संरचनाएं पास पास आ जाती है। जिससे धीरे-धीरे खर्राटों के साथ स्वास की प्रक्रिया अवरुद्ध होने लगती है। जैसे जैसे रोगी नींद में जाता है श्वास नली पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाती है। इस प्रक्रिया के कारण ऑक्सीजन का स्तर घटने लगता है और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है। परिणाम स्वरूप हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर को जागने के संकेत देता है। कोई व्यक्ति की नींद टूट जाती है। ऐसा बार-बार होने पर व्यक्ति ठीक से नींद नहीं रह पाता है या दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्ति को स्वस्थ नींद नहीं आती है।

नींद में बड़बड़ाना या चलना भी एक तरह की बीमारी है

नींद में बड़बड़ाना से न सिर्फ खुद की नींद टूट जाती है बल्कि दूसरे लोग भी परेशान हो सकते हैं। नींद में बड़बड़ाना बीमारी तो नहीं लेकिन बीमारी जैसी ही है, इससे संबंधित व्यक्ति की सेहत गड़बड़ होने का पता चलता है।
नींद में बोलना ही बड़बड़ाना है, क्योंकि इस दौरान आधे अधूरे या अस्पष्ट वाक्य बोल पाते हैं। यह एक तरह का पेरासोम्निया है। ऐसा अधिक से अधिक 30 सेकंड के लिए होता है। नींद में चलना ,हाथ पैर मारना, हंसना ,गुस्सा होना भी इसी का हिस्सा है।
पेरासोमनीया के साथ ही बुरे या डरावने सपने इसके कारण हो सकते हैं। कई बार हम जिस बारे में सोच रहे होते हैं वही चीजें सपनों में आने लगती है। यदि ऐसा बचपन से होता है तो दिक्कत नहीं है, लेकिन अधिक उम्र में होना दूसरे रोगों की ओर संकेत करता है।
यह समस्या 3 से 10 साल तक के बच्चों में अधिक सामने आती है। एक स्टडी के अनुसार 10 में से एक बच्चा सप्ताह में कई बार बड़बडा ता है, हालांकि इस दौरान बच्चे अपने अधूरी बातें पूरी करते हैं। बच्चों में इस तरह की समस्या आम बात है और इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है।
शरीर में मेलाटोनिन की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। डिमेंशिया या पार्किंसन जैसी बीमारियों के साथ ही स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर में यह समस्या हो सकती है। इस दौरान इंसान सपने देखता है। दवाइयों का रिएक्शन,तनाव ,मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आदि भी नींद में बड़बड़ाना की समस्या पैदा कर सकते हैं।

स्वस्थ नींद नहीं लेने के दुष्प्रभाव

यदि व्यक्ति स्वस्थ नींद नहीं है तो उसके सामान्य जीवन में कई प्रकार के दुष्प्रभाव सामने आते हैं जो इस प्रकार है -
1. सड़क दुर्घटना: प्रायः यह देखा गया है कि रात्रि में सड़क पर होने वाली दुर्घटनाएं नींद की कमी या नींद की झपकी के कारण होती है। स्लीप एपनिया, खर्राटे या अन्य किसी स्लीपिंग डिसऑर्डर के कारण नींद पूरी नहीं होती और इस प्रकार की दुर्घटनाओं का कारण बनती है।
2. स्लीपिंग डिसऑर्डर के कारण रोगी मैं रात को सोते समय सांस रुकने के कारण हृदय गति धीमी पड़ जाती है ,और जैसे ही मरीज जागता है ,हृदय गति अचानक तेज हो जाती है। और ऐसा बार बार होता है ,अतः हृदय की धड़कने की क्षमता पर असर पड़ता है और हार्ट फेल होने की संभावना बढ़ जाती है।
3. कई अध्ययनों से सामने आया है कि खर्राटे मधुमेह का कारण भी बन सकते हैं।
4. हाल ही में हुए अध्ययनों से मालूम पड़ा है कि सवेरे के समय आकस्मिक मृत्यु का कारण स्लीप एपनिया रोग या अन्य स्लीपिंग डिसऑर्डर हो सकते हैं।
5. यदि रोगी को लगातार खर्राटे,स्लीप एपनिया की समस्या रहती है,तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ोतरी के कारण रोगी नींद में ही कोमा में जा सकता है।

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